Thursday, August 20, 2020

पर्यावरण संबंधी संस्थाएँ एवं संगठन | Environmental Related Organizations

पर्यावरण संबंधी संस्थाएँ एवं संगठन


पर्यावरण संबंधी संस्थाएँ एवं संगठन,Environmental Related Organizations


पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण, संरक्षण एवं सतत विकास को बढ़ावा देने के लिये पर्यावरण की प्रगति आदि के नियंत्रण के लिये हमारे देश की सरकार की भूमिका काफी आलोचनात्मक है। विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर कार्य करने के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर, राष्ट्रीय सरकारों तथा सिविल सोसाइटी द्वारा कई पर्यावरण संबंधी संस्थाएँ एवं संगठन स्थापित किए गए हैं। कोई भी पर्यावरणीय संगठन एक ऐसा संगठन होता है जो पर्यावरण को किसी प्रकार के दुरुपयोग तथा अवक्रमण के खिलाफ सुरक्षित करता है साथ ही ये संगठन पर्यावरण की देखभाल तथा विश्लेषण भी करते हैं एवं इन लक्ष्यों को पाने के लिये प्रकोष्ठ भी बनाते हैं। 

पर्यावरणीय संगठन सरकारी संगठन हो सकते हैं, गैर सरकारी संगठन हो सकते हैं या एक चैरिटी अथवा ट्रस्ट भी हो सकते हैं। पर्यावरणीय संगठन वैश्विक, राष्ट्रीय या स्थानीय हो सकते हैं। यह पाठ अग्रणीय पर्यावरणीय संगठनों के बारे में सूचना प्रदान करता है। ये संगठन सरकारी हों या सरकार के बाहर के राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के संरक्षण तथा विकास के लिये कार्य करते हैं।

उद्देश्य


i. भारत में पर्यावरणीय प्रशासन से संबंधित विभिन्न मंत्रालयों तथा संस्थाओं की सूची बना सकेंगे !
ii. पर्यावरणीय प्रबंधन के क्षेत्र में वैश्विक संस्थाओं की जिम्मेदारी तथा उनकी भूमिका का वर्णन कर सकेंगे!
iii. पर्यावरणीय संरक्षण एवं सतत विकास में लगे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) की भूमिका तथा गतिविधियों का वर्णन कर पाएँगे !
iv. पर्यावरण के लिये संयुक्त राष्ट्र के निकायों की भूमिका का वर्णन कर सकेंगे।

भारत में पर्यावरणीय संस्थाओं की ऐतिहासिक रूपरेखा 


भारतीय सभ्यता के आरम्भ से ही पर्यावरण को सुरक्षित रखने की जागरूकता लोगों में मौजूद थी। वैदिक एवं वैदिककाल के बाद का इतिहास इस बात का साक्षी है लेकिन आधुनिक काल में, विशेष रूप से स्वतंत्रता के बाद से, आर्थिक प्रगति को उच्च प्राथमिकता मिलने के कारण, पर्यावरण कुछ कम महत्त्वपूर्ण स्थान पर रह गया। केवल 1972 में पर्यावरणीय योजना एवं सहयोग के लिये राष्ट्रीय कमेटी (National Committee of Environment and Forest, NCEPC) के गठन के लिये कदम उठाए गए जो धीरे-धीरे पर्यावरण का अलग विभाग बना और 1985 में यह पूर्णरूप से पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के रूप में परिवर्तित हुआ। शुरूआत में भारत के संविधान में पर्यावरण को बढ़ावा देने या उसके संरक्षण के लिये किसी प्रकार के प्रावधान नहीं थे। लेकिन 1977 में हुए 42वें संविधान संशोधन में कुछ महत्त्वपूर्ण धाराएँ जोड़ी गई जो सरकार पर एक स्वच्छ एवं सुरक्षित पर्यावरण प्रदान करने की जिम्मेदारी सौंपती है।

राष्ट्रीय पर्यावरणीय एजेंसियाँ


पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं वन्य जीवन के लिये भारतीय बोर्ड ही मुख्य राष्ट्रीय पर्यावरणीय एजेंसियाँ हैं।

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (Ministry of Environment and Forest)


पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (MoEF) देश में पर्यावरण एवं वन संबंधी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की योजना बनाने, उसका प्रचार करने, समन्वय करने के लिये केन्द्रीय सरकार के प्रशासनिक तंत्र में एक नोडल एजेंसी है। इस मंत्रालय द्वारा किए जाने वाले कार्यों की मुख्य गतिविधियाँ भारत के वनस्पति तथा जीव जन्तुओं को संरक्षण एवं सर्वेक्षण, वनों एवं बीहड़ क्षेत्रों का सर्वेक्षण एवं संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण तथा निवारण, वनरोपण को बढ़ावा तथा भूमि अवक्रमण को कम करना सम्मिलित है। 

यह भारत के राष्ट्रीय उद्यानों (National Park) के प्रशासन के लिये भी जिम्मेदार है। इसके इस्तेमाल होने वाले मुख्य साधन सर्वेक्षण, पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन, प्रदूषण नियंत्रण, पुनरुत्पादन कार्यक्रम, संगठनों का समर्थन, समाधान खोजने के लिये शोध एवं आवश्यक मानवशक्ति को कार्य करने के लिये प्रशिक्षण, पर्यावरणीय सूचना का संग्रह एवं वितरण तथा देश की जनसंख्या के सभी भागों में पर्यावरणीय जागरूकता फैलाना है। यह मंत्रालय यूनाइटेड नेशन्स पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme, UNEP) के लिये भी नोडल एजेंसी है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड


  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board, CPCB) एक वैधानिक संगठन है जिसका गठन सितंबर 1974 में, जल कानून (प्रदूषण का नियंत्रण एवं निवारण) के तहत हुआ था। इसके अलावा CBCB को वायु कानून (प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण), 1981 के तहत क्षमताएँ एवं कार्य भी सौंपे गए थे। यह 1986 के अन्तर्गत पर्यावरण (संरक्षण) कानून के प्रयोजनों के लिये पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ प्रदान करता है एवं इसके लिये क्षेत्र निर्माण भी करता है।

  • CBCB के मुख्य कार्य, जैसा कि 1974 के जल कानून (प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण) तथा 1981 के वायु कानून (प्रदूषण नियंत्रण तथा निवारण) में बताया गया : (i) राज्यों के विभिन्न भागों में जल धाराओं तथा कुओं की सफाई को बढ़ावा देना जिसमें जल प्रदूषण का नियंत्रण, निवारण तथा कटौती शामिल हो, (ii) देश में वायु प्रदूषण का नियंत्रण, निवारण तथा कटौती के साथ-साथ वायु की गुणवत्ता का विकास करना।

  • वायु गुणवत्ता का ध्यान रखना, वायु गुणवत्ता के प्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणता मॉनीटरन प्रोग्राम (NAAQM) का गठन, वायु गुणवत्ता के वर्तमान स्तर का निर्धारण करने, कल कारखानों तथा अन्य स्रोतों में से वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन का नियंत्रण एवं व्यवस्थापन करने तथा वायु गुणवत्ता को मानकों तक पहुँचाना जैसे उद्देश्यों के लिये हुआ था। यह उद्योगों को स्थापित करने तथा नगर योजनाओं के लिये आवश्यक वायु गुणवत्ता आंकड़ों के लिये पृष्ठभूमि भी प्रदान करता है।

  • अलवण (शुद्ध) जल एक सीमित संसाधन है जो कृषि, उद्योग, वन्य जीव-जन्तुओं एवं मात्स्यिकी के पालन तथा मानव जीवन के लिये अत्यंत आवश्यक है। भारत नदियों से परिपूर्ण देश है परन्तु यहाँ पर असंख्य झीलें, तालाब तथा कुएँ हैं, जो पेयजल के मुख्य स्रोत के रूप में इस्तेमाल होते हैं, यहाँ तक कि बिना पानी का शोधन किए भी। अधिकांश नदियों में मानसून की वर्षा का पानी एकत्र होता है, जो साल के तीन महीनों तक ही सीमित है। अतः वर्ष के बाकी महीनों में ये सूख जाती हैं और अक्सर इनमें शहरों, कस्बों तथा उद्योगों से निष्कासित गंदा पानी ही बहता है जो हमारे कम हो रहे जलस्रोतों की गुणवत्ता पर और खतरा पैदा करता है। भारत की संसद ने अपनी बुद्धिमत्ता के अनुसार जल कानून (प्रदूषण का नियंत्रण एवं निवारण) 1974 इसलिये बनाया था ताकि हमारे जल भंडारों की स्वास्थ्यवर्धक क्षमता को सुरक्षित रखा जा सके। CBCB का एक मत ये है कि जल प्रदूषण से संबंधित तकनीकी तथा सांख्यिकी आंकड़ों को संग्रह करो, उन्हें मिलाओ और फिर उनका प्रसार करो। अतः जल गुणवत्ता मॉनीटरन (Water Quality Monitoring, WQM) एवं निगरानी दोनों काफी महत्त्वपूर्ण हैं।

  • भारतीय मानकों की गुणवत्ता की आवश्यकताओं के साथ-साथ कुछ पर्यावरण की शर्तों को पूरा करने के लिये बनाए गए घरेलू एवं उपभोक्ता उत्पादों के लिये ‘‘पर्यावरण मित्र उत्पाद’’ के लेबल की योजना काफी प्रभावी हो रही है। इस योजना को ‘‘इकोमार्क स्कीम ऑफ इंडिया (Eco mark scheme of India)’’ कहा जाता है।


राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय बोर्ड के कार्य


1. केंद्रीय सरकार को जल एवं वायु प्रदूषण के नियंत्रण एवं निवारण से जुड़े किसी भी मुद्दे पर एवं वायु की गुणवत्ता को बढ़ाने के बारे में सलाह देना।

2. जल एवं वायु प्रदूषण के नियंत्रण, निवारण तथा कटौती के लिये राष्ट्रव्यापी कार्यक्रमों की योजना एवं संचालन करना।

3. राज्य बोर्डों की गतिविधियों का समन्वयन एवं उनके आपसी मतभेदों को दूर करना।

4. राज्य बोर्डों को तकनीकी सहायता एवं दिशा-निर्देश प्रदान करना, वायु एवं जल प्रदूषण से संबंधित समस्याएँ एवं उनके नियंत्रण, निवारण तथा कटौती के लिये शोध को कार्यान्वित करना एवं उनका समर्थन करना।

5. जल एवं वायु प्रदूषण के नियंत्रण, निवारण तथा कटौती से संबंधित कार्यक्रमों से जुड़े लोगों के प्रशिक्षण की योजना एवं व्यवस्था करना।

6. जल एवं वायु प्रदूषण के नियंत्रण, निवारण तथा कटौती के प्रोग्राम के बारे में एक व्यापक जन जागरूकता लाने के लिये एक जनसंचार की व्यवस्था प्रदान करना।

पर्यावरणीय शासन एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

  • अंब्रेला एक्ट (Umbrella Act) EPA (पर्यावरणीय संरक्षण एजेंसी, Environmental Protection Agency Act), 1986 ने पहले के सभी प्रयोजनों को और मजबूती प्रदान की। देश में औद्योगिक, वाहन संबंधित तथा ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के लिये विशेष प्रावधान किए गए।

  • भारत में, राज्यों की अपनी स्वयं कोई पर्यावरण नीति नहीं हैं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर बनाई गई नीतियों को ही अपनाते हैं बस इसमें उस राज्य की स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार थोड़े बहुत परिवर्तन कर लिये जाते हैं। केन्द्र सरकार भी, राज्य सरकारों को विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर दिशा-निर्देश देती रहती है।


वन्य जीवों के लिये भारतीय बोर्ड


देश में IBWL (Indian Board for Wildlife) वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में, एक अहम सलाहकार संस्था है एवं इसके अध्यक्ष भारत के माननीय प्रधानमंत्री होते हैं। IBWL का पुनर्गठन 7 दिसम्बर, 2001 से प्रभावकारी हुआ। IBWL की 21वीं बैठक 21 जनवरी, 2002 को नई दिल्ली में हुई जिसमें भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने अध्यक्षता की थी।

अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरणीय एजेंसियाँ


यूनाइटेड नेशन्स पर्यावरण प्रोग्राम (UNEP), वर्ल्ड स्वास्थ्य संगठन (WHO) खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) आदि कुछ मुख्य अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियाँ हैं।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)


  • UNEP का गठन यूनाइटेड नेशन्स जनरल असेंबली द्वारा यूनाइटेड नेशन्स की स्टॉकहोम, स्वीडन में, उसी वर्ष मानव पर्यावरण के ऊपर हुई कान्फ्रेंस के परिणामस्वरूप हुआ। 1992 में रियो-डी जेनेरियो में पर्यावरण एवं विकास पर हुई संयुक्त राष्ट्र कान्फ्रेंस तथा 2002 में जोहान्सबर्ग में सतत (दीर्घोपयोगी) विकास पर हुआ, विश्व शीर्ष सम्मेलन (इसे RIO + 10 भी कहा जाता है) भी इसकी संरचना को बदल नहीं पाए। इसका मुख्यालय नैरोबी (केन्या) में है।

  • UNEP का मुख्य मत है वैश्विक पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण नीति के विकास का संचालन करना तथा अन्तरराष्ट्रीय समुदाय एवं सरकारों का ध्यान ज्वलंत मुद्दों की तरफ आकर्षित करना जिससे उन पर कार्य हो सके। इसकी गतिविधियाँ बहुत से मुद्दों को समेटती हैं, जिसमें वायुमंडल, समुद्री एवं स्थलीय या पारितंत्र शामिल हैं।

  • UNEP ने अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरणीय परंपराओं को विकसित करने में एक अहम भूमिका निभाई है। इसके अलावा UNEP ने पर्यावरणीय गैर सरकारी संगठनों (NGO) के साथ कार्य करने में, राष्ट्रीय सरकार तथा क्षेत्रीय संस्थानों के साथ नीतियों को विकसित करने तथा उन्हें क्रियान्वित करने में एवं पर्यावरणीय विज्ञान तथा सूचना को बढ़ावा देने के साथ उन्हें यह भी बताया कि वे नीतियों के अनुसार किस प्रकार कार्य करेंगे, आदि कार्यों में भी अहम भूमिका निभाई है। UNEP पर्यावरण के दीर्घोपयोगी विकास के लिये, उचित पर्यावरणीय प्रयासों द्वारा, पर्यावरण से संबंधित योजनाओं के विकास एवं क्रियान्वयन तथा आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने में भी सक्रिय रहा है।


UNEP के कार्यों का क्रियान्वयन निम्न सात विभागों द्वारा किया जाता हैः

i. जल्द चेतावनी एवं उनका आकलन (Early Warning and Assessment)
ii. पर्यावरणीय नीति क्रियान्वयन (Environmental Policy Implementation)
iii. तकनीक, उद्योग एवं अर्थशास्त्र
iv. क्षेत्रीय सहयोग
v. पर्यावरणीय कानून एवं सम्मेलन
vi. वैश्विक पर्यावरण सुविधा सहयोग (Environmental law and convention)
vii. संचार एवं जन सूचना

  • UNEP के कई अहम कार्यों में से ‘‘विश्व को स्वच्छ रखो’’ (Cleanup the world) अभियान के द्वारा विश्व में इस बात की जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जाता है कि हमारी आधुनिक जीवनशैली के क्या दुष्प्रभाव हैं।

  • अन्तरराष्ट्रीय मार्गों का प्रदूषण, सीमा पार का वायु प्रदूषण तथा हानिकारक रसायनों का अन्तरराष्ट्रीय व्यापार जैसे मुद्दों पर दिशा-निर्देश तथा संधियों के विकास में UNEP ने काफी मदद की है।

  • विश्व मौसम विज्ञान संबंधी संगठन (The World Metrological Organisation) एवं UNEP ने मिलकर 1988 में जलवायु परिवर्तन पर अन्तरराष्ट्रीय पैनल, इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) का गठन किया था। वैश्विक पर्यावरणीय सुविधा (Global Environment facility, GEF) का क्रियान्वयन एजेंसियों में से UNEP भी एक है।


आर्थिक सहायता (Funding)


UNEP को अपने कार्यक्रमों के लिये आवश्यक आर्थिक सहायता पर्यावरण कोष से प्राप्त होती है जिसका रख-रखाव सदस्य सरकारों के स्वैच्छिक सहयोग से, सत्तर से भी अधिक ट्रस्टी कोषों के सहयोग से तथा यूनाइटेड नेशन्स के नियमित बजट में से छोटे से सहयोग से किया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization, WHO)


संघटना एवं इतिहास


  • WHO के संविधान के अनुसार इसके उद्देश्य हैं ‘‘सभी लोगों को स्वास्थ्य की प्रणाली उच्चतम संभावित स्तर पर उपलब्ध हो’’ इसका मुख्य कार्य है रोगों से लड़ाई, विशेषकर संक्रामक रोगों से, एवं विश्व के लोगों में सामान्य स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र की प्रारंभिक एजेंसियों में से एक है। इसका सर्वप्रथम गठन प्रथम विश्व स्वास्थ्य दिवस (7 अप्रैल, 1948) को हुआ था। जब इसका समर्थन 26 सदस्य देशों द्वारा किया गया था। WHO में 193 सदस्य देश हैं।


गतिविधियाँ

  • सार्स (SARS, Severe Acute Respiration Syndrome), सीवीयर ऐक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम), मलेरिया, स्वाइन फ्लू एवं एड्स (AIDS) जैसी संक्रामक बीमारियों को फैलने से बचाने के वैश्विक प्रयासों के समन्वयन पर ध्यान रखना एवं इन रोगों के इलाज एवं रोकथाम के लिये कार्यक्रम प्रवर्तित करना WHO की गतिविधियों में शामिल है। सुरक्षित एवं प्रभावी टीके, फार्मास्यूटिकल डॉयग्नॉस्टिक्स एवं दवाओं के विकास एवं वितरण को WHO समर्थन करता है। चेचक के लिये करीब दो दशकों तक लड़ने के बाद 1980 में WHO ने घोषणा की कि यह बीमारी पूरी तरह से मिटा दी गई है। यह इतिहास में पहली ऐसी बीमारी थी जो मानव प्रयास द्वारा पूरी तरह से मिटा दी गई थी।

  • WHO का लक्ष्य है अगले कुछ वर्षों में पोलियो को भी जड़ से मिटा देना। कई बीमारियों को जड़ से मिटाने के इसके काम के साथ-साथ हाल ही के कुछ वर्षों में WHO ने स्वास्थ्य से जुड़े कई मुद्दों जैसे तंबाकू के सेवन को कम कराना तथा लोगों में फल तथा सब्जियों के सेवन को बढ़ाने के अभियान की तरफ अधिक ध्यान देना शुरू किया है।

  • पर्यावरण और स्वास्थ्य का आपस में घनिष्ट संबंध है। 1992 का पर्यावरण एवं विकास पर की गई रियो घोषणा का नियम कहता है कि ‘‘सतत (दीर्घोपयोगी) विकास की चिंता के केंद्र में मानव जाति है। वे प्रकृति को संतुलन बनाए रखते हुए एक स्वस्थ्य तथा उत्पादकता पूर्ण जीवन के हकदार हैं।’’ पर्यावरणीय खतरे, संपूर्ण विश्व में होने वाली बीमारियों के कुल योग का करीब 25% (अनुमानित) के लिये जिम्मेदार है।


हेली (HELI)


  • पर्यावरण संबंधित स्वास्थ्य खतरों से निपटने के लिये WHO ने हेल्थ एनवायरनमेंट लिंक इनीशिएटिव (Health Environmental Link Initatiave, HELI) का विकास किया है। HELI, WHO एवं UNEP के द्वारा किया गया एक वैश्विक प्रयास है जो विकासशील देशों के नीतिकारों द्वारा स्वास्थ्य पर होने वाले पर्यावरणीय खतरों पर किए जाने वाले कार्यों का समर्थन करता है।

  • HELI सभी देशों से इस बात को बढ़ावा देने की बात करता है कि आर्थिक विकास का संबंध स्वास्थ्य एवं पर्यावरण से होता है। आमतौर पर स्वस्थ्य जीवन एवं कार्य का वातावरण तथा वायु, जल, खाद्य एवं ऊर्जा के स्रोतों का पुनरुत्पादन अथवा प्रयोजन या जलवायु नियंत्रण जैसी सभी सेवाएँ जो मानव स्वास्थ्य तथा तंदुरुस्ती के लिये हैं, का आकलन एवं समर्थन HELI द्वारा किया जाता है। HELI की गतिविधियों में राष्ट्रस्तरीय पायलट प्रोजेक्ट भी शामिल हैं।


संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO)


यह यूनाइटेड नेशन्स की एक विशिष्ट एजेंसी है जो भुखमरी को मिटाने के अन्तरराष्ट्रीय प्रयासों की अगुआई करती है। विकसित एवं विकासशील दोनों तरह के देशों की सेवा करते हुए FAO (Food and Agriculture Organization) एक निष्पक्ष फोरम के रूप में कार्य करता है जहाँ सभी देश समान रूप से मिलकर बहस की नीति तथा सहमतियों पर विचार करते हैं। 

FAO ज्ञान एवं सूचना का एक स्रोत भी है एवं यह विकासशील देशों तथा परिवर्तनशील देशों को कृषि को आधुनिक बनाने एवं इसकी प्रगति, मत्स्य पालन तथा वनरोपण के कार्यों, सभी के लिये खाद्य सुरक्षा एवं सुपोषण सुनिश्चित करना आदि कार्यों में मदद करता है। इसका लैटिन भाषा में आदर्श वाक्य है 'Fiat Panis' जिसका अंग्रेजी में अर्थ है 'Let there be bread' अर्थात हम हिंदी में कह सकते हैं कि ‘‘सभी को रोटी मिले’’।

FAO का मुख्यालय रोम में है


  • WHO के सदस्य राष्ट्र विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly) के लिये प्रतिनिधि मंडल नियुक्त करते हैं। विश्व स्वास्थ्य सभा, WHO की सर्वश्रेष्ठ निर्णयकारी संस्था है। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश, WHO की सदस्यता के लिये उपयुक्त हैं एवं WHO की वेबसाइट के अनुसार, अन्य देश भी सदस्य के रूप में दाखिल हो सकते हैं जब उनका आवेदन विश्व स्वास्थ्य सभा के सामान्य बहुमत से स्वीकृत हो जाए।

  • यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC)


समझौता (सम्मेलन) एवं प्रोटोकॉल


  • एक दशक पहले हुए संयुक्त राष्ट्र के इस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन UNFCCC में अधिकांश देश एक अन्तरराष्ट्रीय संधि में सम्मिलित हुए- एकमत होकर सोचना व कार्य करना प्रारंभ किया कि वैश्विक ऊष्मण को कम करने के लिये क्या-क्या किया जाना चाहिए एवं तापमान बढ़ने के अपरिहार्य कारणों से किस तरह तालमेल बैठाकर चलना चाहिए। हाल ही में कई देशों ने इस संधि में कुछ अतिरिक्त को भी मान्यता प्रदान की और उसका नाम ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ हुआ जिसमें अधिक शक्तिशाली तरीके हैं जो कानूनी रूप से बाध्य होंगे।

  • इस विभाग में असंख्य संसाधन शामिल हैं- शुरूआती अथवा कुशल लोगों के लिये जैसे परिचयात्मक अथवा गहन प्रकाशन, आधिकारिक UNFCCC एवं क्योटो प्रोटोकॉल पाठ्य सामग्री एवं UNFCCC लाइब्रेरी के लिये एक सर्च इंजन।


समस्या का सामना एवं उसकी खोज करना


इस सम्मेलन की एक मुख्य उपलब्धि जो कि सामान्य एवं लचीली है वह यह है कि यह पहचान करता है कि समस्या क्या है। 1994 में यह कोई छोटी बात नहीं थी जब संधि प्रभावकारी हुई और इसके पास वैज्ञानिक सबूत कम मात्रा में उपलब्ध थे। (और अभी भी ऐसे कई लोग हैं जो यह मानने से मना करते हैं कि वैश्विक ऊष्मण (ग्लोबल वार्मिंग) वास्तव में हो रहा है और जलवायु परिवर्तन एक समस्या है)। 

विश्व के देशों को किसी एक बात पर सहमत कराना बहुत ही कठिन कार्य है। एक समस्या जो जटिल है उसके लिये हमें मिलकर प्रयास करना होगा, इसके परिणाम भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है एवं इसके भविष्य में कई दशकों या शताब्दियों तक बड़े भयंकर परिणाम हो सकते हैं।

  • यह सम्मेलन एक उद्देश्य तय करता है जिससे ग्रीन हाउस गैसों के सांद्रण को स्थिर किया जा सके ‘‘एक ऐसे स्तर पर जो जलवायु प्रणाली के साथ किसी भी प्रकार के खतरनाक मानव हस्तक्षेप को रोकता है।’’ इसके अनुसार ‘‘इस प्रकार का स्तर एक निश्चित समय सीमा के भीतर प्राप्त किया जा सकता है जो पारितंत्रों को प्राकृतिक रूप से जलवायु परिवर्तन के साथ ढालने के लिये पर्याप्त हो। इससे खाद्य उत्पादन पर कोई खतरा न हो एवं इससे आर्थिक विकास के सतत एवं सुचारु रूप से चलने में मदद मिल सके।’’ सम्मेलन को औद्योगिकीकरण वाले देशों से उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसों की नियमित एवं सही सूची मिलती रहनी चाहिए। किसी भी समस्या को सुलझाने का पहला चरण है इसके आयामों को जानना। कुछ अपवादों को छोड़कर, ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन तालिकाबद्ध करने का ‘‘आधार वर्ष’’ 1990 को ही माना जाता है। विकासशील देशों को भी सूची बनाने के लिये प्रोत्साहित किया जा रहा है ! 

  • वे देश जो इस संधि को मानते हैं उन्हें ‘‘सम्मेलन की पार्टी’’ कहा जाता है और ये देश कृषि, उद्योग, ऊर्जा प्राकृतिक संसाधन एवं समुद्र तट से जुड़ी गतिविधियों में जलवायु परिवर्तन को साथ में लेकर चलने पर सहमत होते हैं। ये जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में एक राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाने पर भी सहमत होते हैं।

  • सम्मेलन इस बात की पहचान करता है कि यह एक ‘‘ढाँचागत’’ दस्तावेज है- जो समय-समय पर संशोधित किया अथवा बढ़ाया जा सकता है जिससे वैश्विक ऊष्मण और जलवायु परिवर्तन से जुड़े कार्यों एवं प्रयासों को अधिक ध्यानाकर्षित एवं प्रभावशाली बनाया जाए। इस संधि में पहली वृद्धि ‘‘क्योटो प्रोटोकॉल’’ के रूप में 1997 में स्वीकृत की गई थी।


 क्योटो प्रोटोकॉल - इसका अर्थ क्या है


क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol)- एक अन्तरराष्ट्रीय तथा कानूनी रूप से बाध्य करने वाला समझौता है जिसके द्वारा विश्वभर में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। यह 16 फरवरी 2005 से लागू हुआ था।

दायित्व


1. सम्मेलन औद्योगीकरण वाले देशों पर जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिये काफी दबाव डालता है क्योंकि ये देश ही भूत और वर्तमान के ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत हैं। इन देशों को यह कहा गया है कि इस प्रकार के उत्सर्जनन को कम करने का वे हर संभव प्रयास करें। इन विकसित देशों को ‘एनेक्स 1’ (Annex I) देश कहा जाता है। इसका कारण है कि ये संधि के पहले एनेक्स (परिशिष्ट) में सूचीबद्ध हैं। इनका अधिकांश भाग (आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन) (Organisation for Economic Cooperation and Development, OECD) के अंतर्गत आता है।

2. ये प्रगतिशील देश एवं 12 ‘‘परिवर्तनकारी अर्थव्यवस्थाएँ’’ (केंद्रीय एवं पूर्वी यूरोप के कुछ देश, जिनमें कुछ देश पहले सोवियत यूनियन के अंतर्गत आते थे) से आशा की गई थी कि सन 2000 तक ये अपने देशों में उत्सर्जन का स्तर कम करके 1990 के स्तर तक ले आएँगे। एक समूह के रूप में ये सफल हुए।

3. औद्योगिक देश सम्मेलन के अंतर्गत विकासशील देशों में होने वाली जलवायु परिवर्तन की गतिविधियों को आर्थिक समर्थन देने पर सहमत हो गए हैं। सम्मेलन के द्वारा ऋण एवं दान की एक प्रणाली भी बनायी गयी है और इसे वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility) द्वारा प्रबंधित किया जाता है। औद्योगिक देश, कम प्रगतिशील देशों से तकनीक की सहभागिता पर भी सहमत हो गए हैं।

  • क्योंकि आर्थिक विकास विश्व के निर्धन देशों के लिये आवश्यक है- चूँकि इस तरह की प्रगति जलवायु परिवर्तन द्वारा पैदा की गई किसी भी प्रकार की कठिनाई के बिना, पाना संभव नहीं है, अतः सम्मेलन यह स्वीकार करता है कि आने वाले वर्षों में विकासशील देशों द्वारा उत्पन्न ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की भागीदारी बढ़ेगी। इसलिये इन देशों को उत्सर्जन कम करने की दिशा में इस प्रकार से मदद करनी चाहिए ताकि उनकी आर्थिक प्रगति में कोई रुकावट न पहुँचे।

  • सम्मेलन यह स्वीकार करता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रति विकासशील देशों का रवैया दोषपूर्ण है। अतः इसके भयंकर परिणामों को कम करने के लिये यह विशेष प्रयासों की अपील करता है।


गैर सरकारी संगठन


कोई भी गैर सरकारी संगठन (NGOs) एक ऐसा संगठन है जो सरकार का हिस्सा नहीं होता है। इसे ज्यादातर आर्थिक सहायता निजी सहयोग से मिलती है जो संस्थागत सरकार अथवा राजनैतिक संरचना के बाहर कार्य करती है। इसी कारण से NGO (Non Government Organisation), सरकार से पूर्णतः स्वतंत्र होते हैं।

आम तौर पर NGOs का अपना स्वयं का कार्यक्रम होता है। ऐसे कई NGOs हैं जो वन्य जीव जन्तुओं के संरक्षण, पर्यावरण की सुरक्षा, संसाधनों का संरक्षण एवं सतत विकास के कार्य के लिये प्रतिबद्ध रूप से कार्यरत हैं। पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय NGOs की गतिविधियाँ एवं क्षेत्र नीचे बताए गए हैं।

 इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर


  • IUCN (International Union for Conservation of Nature) विश्व का सबसे पुराना एवं सबसे बड़ा वैश्विक पर्यावरण नेटवर्क है। यह एक गणतांत्रिक सदस्य सभा है जिसमें 1000 से अधिक सरकारी और गैर सरकारी सदस्य संगठन हैं, एवं करीब 11,000 स्वयंसेवी वैज्ञानिक हैं जो 160 से अधिक देशों में रहते हैं। IUCN का कार्य, विश्व में चारों तरफ फैले सैकड़ों पब्लिक, NGOs एवं प्राइवेट क्षेत्रों के पार्टनरों तथा 60 ऑफिसों के करीब सौ से अधिक पेशेवर स्टाफ की मदद से चलता है। इसका मुख्यालय जेनेवा के निकट, ग्लैंड, स्विट्जरलैंड में स्थित है।

  • IUCN पर्यावरण तथा विकास से जुड़ी अधिकांश चुनौतियों के लिये व्यावहारिक समाधान विकसित करने के लिये कार्य करता है। यह वैज्ञानिक शोध का समर्थन करता है, पूरे विश्व में फील्ड प्रोजेक्टों का प्रबंधन करता है तथा सरकारी, गैर सरकारी, संयुक्त राष्ट्र, विभिन्न कंपनियों एवं स्थानीय समुदायों को एक जुट करता है जिससे नीतियों एवं कानूनों का क्रियान्वयन अच्छी तरह से हो सके।


IUCN का मिशन एवं दृष्टिकोण


1. पूरे विश्व में फैले विभिन्न समाजों को प्रभावित करना, बढ़ावा देना एवं उनकी मदद करना जिससे वे प्रकृति की विभिन्नता एवं अखंडता का संरक्षण कर सकें तथा यह सुनिश्चित करे कि किसी भी प्राकृतिक संसाधन का इस्तेमाल पूर्णतः न्याय संगत हो एवं पारिस्थितिकी के अनुसार चलने वाला भी हो।

2. प्रकृति हमें जीवन की सभी मूलभूत आवश्यकताएँ जैसे जल, खाद्य, स्वच्छ हवा, ऊर्जा एवं आवास प्रदान करती है। इसलिये हमें प्रकृति का बुद्धिमानी से इस्तेमाल करना चाहिए एवं इसकी सुरक्षा करनी चाहिए। लेकिन इसके साथ-साथ लोगों के जीवन को सुधारने एवं गरीबी घटाने के लिये सामाजिक एवं आर्थिक विकास भी लगातार होते रहना चाहिए।

3. हमारे जीवन को मिलाकर, पृथ्वी पर स्थित समस्त जीवन का आधार है जैव विविधता- जिसमें विभिन्न पशु-पक्षी, एवं उनके रहने के स्थान का जटिल नेटवर्क शामिल है। जैव विविधता का संरक्षण-पौधों एवं पशुओं की प्रजातियों को लुप्त होने से रोकना एवं प्राकृतिक क्षेत्रों को नष्ट होने से बचाना ही IUCN का मुख्य कार्य है।

4. जैव विविधता से संबंधित मानव जाति के सामने आज चार चुनौतियाँ हैं: जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, आजीविका एवं अर्थशास्त्र। IUCN इसीलिये इन चारों क्षेत्रों पर कार्य करता है जबकि इसका मुख्य कार्य जैव विविधता पर ही है।

कार्य


1. ज्ञानः IUCN संरक्षण विज्ञान का समर्थन करता है खासकर प्रजातियों, पारिस्थितिकी तंत्रों, जैव विविधता एवं मानव आजीविका पर इनका प्रभाव किस प्रकार होगा इस पर विशेष ध्यान देता है।

2. कार्यः IUCN हजारों फील्ड प्रोजेक्ट पूरे विश्व में चलाता है जिससे प्राकृतिक पर्यावरण का प्रबंधन अच्छी तरह से हो सके।

3. प्रभावः IUCN सरकारों, NGO, अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों, UN संगठनों, कंपनियों एवं समुदायों का समर्थन करता है जिससे वे नीतियाँ एवं कानून बनाकर उनका अच्छी तरह क्रियान्वयन कर सकें।

4. सशक्तीकरणः IUCN संगठनों को तैयार करके, उन्हें संसाधन मुहैया कराकर, लोगों को प्रशिक्षित करके तथा परिणामों की मॉनीटरिंग करके नियम, कानून तथा उनके क्रियान्वयन में मदद करता है।

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF)


वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) एक अन्तरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है जो पर्यावरण के संरक्षण, शोध एवं पुनःस्थापन के लिये कार्य करता है। पहले इसका नाम वर्ल्ड वाइड फंड था जो यूनाइटेड स्टेट्स एवं कनाडा में अभी भी इसका आधिकारिक नाम है। यह विश्व का सबसे बड़ा स्वतंत्र संरक्षण संगठन है जिसके संपूर्ण विश्व में करीब 5 मिलियन से अधिक समर्थक हैं जो 90 से अधिक देशों में काम कर रहे हैं, और पूरे विश्व में करीब 1300 संरक्षण एवं पर्यावरण से जुड़े प्रोजेक्टों पर काम कर रहे हैं। यह एक प्रकार का दान है जिसका 60% हिस्सा निजी, व्यक्तिगत, स्वैच्छिक दान के रूप में आता है। इस फंड की 45% आय यूनाइटेड स्टेट्स, यूनाइटेड किंगडम तथा नीदरलैंड से आती है।

  • WWF का लक्ष्य है ‘‘हमारे पर्यावरण को नष्ट होने से रोकना एवं इसका प्रतिकार करना।’’ वर्तमान में इसका अधिकांश कार्य तीन बायोम के संरक्षण पर केंद्रित है। इनमें विश्व की अधिकतम जैव विविधता छिपी हुई है जिसमें वन, अलवण जलीय पारिस्थितिकी तंत्र, महासागर एवं तट शामिल हैं। अन्य मुद्दों में यह विलुप्त प्राय प्रजातियों, प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन पर भी ध्यान देता है।

  • यह संगठन 11 सिंतबर 1961 में स्विट्जरलैंड के मोर्जेस में एक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में गठित हुआ था जिसका नाम वर्ल्ड वाइड फंड रखा गया था। यह जूलियन हक्सले एवं मैक्स निकोल्सन की कोशिश थी जिन्होंने 30 साल के अनुभव के साथ प्रगतिशील बौद्धिक लोगों को बड़े व्यापारिक रुचियों के साथ राजनैतिक तथा आर्थिक योजनाओं के द्वारा जोड़ने का प्रयास किया। कैने डियन फंड के लिये, कनाडा के टोरेंटो में भी इसका एक हेड ऑफिस है।

  • इसके स्थापना दस्तावेज में, संगठन ने अपना वास्तविक लक्ष्य इस तरह उल्लेखित किया हैः ‘‘विश्व के जीव-जन्तु, पेड़-पौधे, वन, स्थल आकृतियाँ जल, मिट्टी एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भूमि के प्रबंधन, शोध एवं खोज, प्रचार, समन्वयन एवं प्रयास, अन्य इच्छुक पार्टियों के साथ सहयोग तथा अन्य उपयुक्त उपायों द्वारा किया जाएगा।’’

  • पिछले कुछ वर्षों में, संगठन ने पूरे विश्व में ही कार्यालय खोल लिये हैं एवं कार्य प्रारंभ कर दिया है। इसकी गतिविधियों का प्रारंभिक केंद्र था विलुप्त प्रायः प्रजातियों की सुरक्षा करना। जैसे-जैसे अधिक संसाधन उपलब्ध होते गए, इसका कार्य अन्य क्षेत्रों जैसे जैव विविधता का संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों का सतत इस्तेमाल तथा प्रदूषण एवं बर्बादी से होने वाली खपत में कमी लाना, आदि की तरफ भी बढ़ता गया।

  • 1986 में संगठन का नाम बदलकर वर्ल्ड फंड फॉर नेचर कर दिया लेकिन उसके आरम्भिक शब्द WWF ही रखे गये !

Labels: