अमन के दुश्मनों पे मुरौव्वत नहीं करते ! Hindi Ghazal
अमन के दुश्मनों पे मुरौव्वत नहीं करते ,
देश के गद्दारों से मोहबत नहीं करते !
जमाना लाख दिखाय सब्ज़ बाग़ दौलत के ,
हम अपने ईमान की तिजारत नहीं करते !
जर्रे - जर्रे में समाया है उसी का नूर ,
कुदरत की किसी शै से नफरत नहीं करते !
रस्मो -रिवाज़ को नींद आ जाती है ज़रूर ,
गर साथ दहेज़ बेटी रुख़सत नहीं करते !
नामो -निशान उनका बाकी न रहेगा ,
जो अपनी तहजीब की हिफाजत नहीं करते !
इल्म -हुनर किस तरह हासिल करेंगे वो ,
जो अपने उस्ताद की इज्जत नहीं करते !
अपनी औलाद से उम्मीद न रखे हरगिज़ ,
जो अपने वालदैन की खिदमत नहीं करते !
हालात ने बंसी को बना डाला है बन्दूक ,
दुसमन हमें मिटाने की हिम्मत नहीं करते !
हर मुश्किल की तदबीर है "ऐ शहामत "
हम कभी बुज़दिलों की हिमायत नहीं करते !
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