Saturday, October 31, 2020

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार | Types of Environmental Pollution

 पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार


1.वायु प्रदूषण

हमारे वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें जीवधारियों की अनेक क्रियाओं द्वारा एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। इन गैसों का असंख्य जीवधारियों और वायुमण्डल के बीच चक्रीकरण होता रहता है। जीवधारियों के द्वारा ही वायुमण्डल में आक्सीकरण और कार्बन डाइआक्साइड संतुलित मात्रा में रहती है। 

किन्तु वायुमण्डल और जीवधारियों के बीच स्थापित संतुलन उस समय संकट में पड़ जाता है, जब उद्योगों, वाहनों एवं घरेलू उपयोगों से निकला धुंआ, विभिन्न प्रकार के रसायनों से उत्पन्न विषैली गैसें, धूल के कण और रेडियोधर्मी पदार्थ वायु में प्रवेश करके इसे मानव स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, अपितु समस्त जीव-जगत के लिए हानिकारक बना देते हैं। यही वायु प्रदूषण कहलाता है।

2.जल प्रदूषण

इस धरती पर जीवन के लिए पहली शर्त है - जल के प्राकृतिक रुप में अस्तित्व। शुद्ध जल स्वादरहित, रंगरहित तथा गन्धरहित होना चाहिए। प्रकृति में जल का स्वयं शुद्धिकरण होता रहता है , परन्तु जब प्राकृतिक एवं मानवजनित स्त्रोतों से उत्पन्न प्रदूषकों का जल में इतना अधिक जमाव हो जाता है कि वह जल की सहन शक्ति या स्वयं शुद्धिकरण की क्षमता से अधिक हो जाता है, तो जल प्रदूषित हो जाता है। 

सी.ए. साउथविक के अनुसार - 

''मानवीय क्रियाकलापों से या किसी अन्य कारणों से जल के रासायनिक, भौतिक तथा जैविक गुणों में परिवर्तन को जल प्रदूषण कहते हैं। ''

जल प्रदूषण के निम्नलिखित कारण हैं-

  • कृषि में प्रयुक्त होने वाले रोगनाशक, कीटनाशक, खरपतवारनाशी, उवर्रक आदि से जल का प्रदूषण होता है।
  • नदियों, तालाबों व अन्य जलाशयों में नहाने, कपड़ा धोन के लिए प्रयुक्त डिटर्जेन्ट, लाशों के जलाने, मरे पशुओं को फेंकने से भी जल प्रदूषित होता है।
  • नगरों में सीवेज और भारी मात्रा में कूड़ा-कचरा से जल में गन्दगी के साथ-साथ अनेक जीवाणु-विषाणु तथा अन्य रोग कारक सूक्ष्म जीव जल को दूषित कर देते हैं।
  • कारखानों से निकलने वाले गंदे अपशिष्ट जल, ठोस एवं घुले रासायनिक प्रदूषक तथा कई प्रकार के धात्विक पदार्थ नदियों, झीलों एवं तटीय सागर के जल को प्रदूषित करते हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों तथा शहरों की मलिन बस्तियों में शौचालयों के अभाव से भी जल प्रदूषण होता है।
  • मृदा अपरदन, भू-स्खलन, ज्वालामुखी उद्गार तथा पौधों एवं जन्तुओं के विघटन एवं वियोजन द्वारा भी जल - प्रदूषण होता है।

3.मृदा प्रदूषण

आज बढ़ती हुई आबादी के उदरपूर्ति के लिए भूमि के प्रति इकाई मात्रा से अधिक उपजल के लिए रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, रोगनाशक तथा अन्य रसायनों का अनियंत्रित प्रयोग किये जाने से हमारी सबसे बड़ी प्राकृतिक संपत्ति, मृदा अपनी गुणवत्ता खोती जा रही है। मृदा प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं - भू-क्षरण, सिंचाई के जल में हानिकारक लवण एवं रसायनों का मिला होना, औद्योगिक अपशिष्ट रासायनिक उर्वरक तथा अनेक तरह के जैवनाशक रसायन।


4.ध्वनि प्रदूषण

प्रदुषण के दूसरे घटकों में ध्वनि प्रदूषण का स्थान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। शांत सुन्दर प्रकृति को हमने शोर-शराबे में डुबो दिया है। धरती पर ध्वनि प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। जब ध्वनि आवांछित रुप से बढ़ती जाती है, तब उसका अर्थ शोर-शराबे में बदल जाता है। ध्वनि की तीव्रता डेसीबल में आंकी जाती है।

साधारण बोलचाल की तीव्रता 60 डेसीबल तक होती है, तथा एक साधारण मानव ज्यादा से ज्यादा 130 डेसीबल तक की तीव्रता वाली ध्वनि सुन सकता है। जब ध्वनि की तीव्रता सुनने की इस सीमा को पार कर जाती है तो यह कष्टकारक हो जाती है। यहां तक कि ज्याद शोर-शराबे की वजह से लोगों के बहरे होने की संभावना अधिक हो जाती है। इसका सबसे बुरा असर बच्चों के ऊपर पड़ता है।

वैज्ञानिकों ने यह प्रयोग द्वारा ज्ञात किया है कि निरंतर शोर वाले स्थानों पर रहने वालों में आंशिक या पूर्ण बहरापन आ जाता है। 80 डेसीबल से अधिक तीव्रता वाले ध्वनि का श्रवण शक्ति पर विपरीत प्रभाव होने लगता है तथा 120 से अधिक डेसीबल वाला शोर इसे इतना अधिक विकृत कर देता है कि कानों की संवेदनहीनता हो जाती है।

ध्वनि तरंगे -

ध्वनि तरंगों के रुप में चलती हैं श्रव्य ध्वनि तरेंगे कहलाती हैं। ध्वनि तरंगों की आवृत्ति को हट्र्ज में मापा जाता है। श्रव्य ध्वनि तरंगों की न्यूनतम आवृत्ति 20 हट्र्ज और अधिकतम 20000 हट्र्ज होती है जिनको हम सुन सकते हैं। 

20 हट्र्ज से कम आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों को हमारे कान नहीं सुन सकते इसे इन्फासोनिक तरंगें कहते हैं और जिस ध्वनि तरंग की आवृत्ति 20000 हट्र्ज से अधिक की होती है उसे अल्ट्रासोनिक ध्वनि तरंग कहते हैं इसे भी हम नहीं सुन पाते हैं। चमगादड़ उड़त समय अल्ट्रासोनिक ध्वनि तरंग उत्पन्न करता है।

5. रेडियोधर्मी प्रदूषण 

मानव के वैज्ञानिक उपलब्धियों में से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि परमाणु ऊर्जा का सृजनात्मक एवं परमाणु बम का विध्वंसक प्रयोग भी है। इस परमाणु ऊर्जा एवं परमाणु बम में प्रयोग किए जाने वाले यूरेनियम, प्लूटोनियम जैसे परमाणु ईंधन के नाभिकों के विखंडन से अपार ऊर्जा तथा अल्फा, बीटा, और गामा किरणों का उत्सर्जन होता है। इसी अल्फा, बीटा और गामा किरणों का उत्सर्जन करने वाले पदार्थों को रेडियोधर्मी पदार्थ तथा इससे उत्पन्न प्रदूषण को रेडियोधर्मी प्रदूषण कहते हैं। 

रेडियोधर्मी प्रदूषण सभी प्रदूषणों से अधिक हानिकारक और भयानक है , जिसका न केवल तात्कालिक प्रभाव पड़ता है, अपितु एक लम्बे समय तक वातावरण में बना रहता है। इस प्रकार से रेडियोधर्मिता से उत्पन्न हुआ प्रदूषण ही रेडियोधर्मी प्रदूषण या नाभिकीय प्रदूषण कहलाता है।

रेडियोधर्मिता के परमाणु के नाभिकों के विखंडन के अतिरिक्त अन्य स्त्रोत भी हैं जैसे ब्रहाण्ड किरणों द्वारा, एक्स-रे तथा अन्य वस्तुओं जो रेडियोधर्मी पदार्थों का उत्सर्जन करती हैं।


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