Monday, November 9, 2020

ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी गैस कौन है ? - Global Warming

 ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)

ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)

                                               ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी गैस कौन है ? - Global Warming


ग्लोबल वार्मिंग से तात्पर्य वैश्विक औसत तापमान में हुए  वृद्धि  से है। पिछले कुछ दशकों में पृथ्वी और इसके वायुमण्डल का तापमान लगातार बढ़ रहा है। वैश्विक तापमान के इसी वृद्धि को ग्लोबल वार्मिंग की संज्ञा पर्यावरणविदों द्वारा दी गई है।

ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण पर्यावरण प्रदूषण के लिए उत्तरदायी ग्रीन हाउस गैसें तथा पर्यावरण प्रदूषण है। ग्रीन हाउस गैसों (जैसे - क्लोरोफ्लोरो कार्बन, नाइट्रस आक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड) तथा ओजोन पृथ्वी पर सूर्य के विकिरण से प्राप्त ताप को रोके रखती है जिसके कारण  वायुमंडल के औसत तापमान में वृद्धि हो जाती है।

इस तापमान में वृद्धि का जलवायु के साथ-साथ जीवधारियों के ऊपर खराब प्रभाव पड़ता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिछले तीन दशकों में विश्व के औसत तापमान में 1 से 1.5 डिग्री सेन्टीग्रेड  की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान में इसी तरह से वृद्धि होती रही तो आने वाले समय में हिमनदों के पिघलने के कारण समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होगी जिसके परिणामस्वरूप कई तटवर्ती बस्तियों के साथ-साथ कई द्वीप समूहों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा अर्थात् ये जलमग्न हो जायेंगे।

विश्व में ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते हुए खतरे को देखते हुए कई अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन किया गया जैसे, 1992 का रियो-डि-जेनेरो में ‘‘पृथ्वी शिखर सम्मेलन‘‘ तथा 1997 में जापान में क्वेटो सम्मेलन। जापान के क्वेटो शहर में हुए ग्लोबल वार्मिंग सम्मेलन में हुए समझौते के अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्रों के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की सीमा अलग-अलग निर्धारित की गई। जैसे यूरोपीय संघ के राष्ट्र ग्रीन हाउस गैसों में 8 प्रतिशत , अमेरिका 7 प्रतिशत तथा जापान 6 प्रतिशत की कटौती सन् 2008 से 2012 के बीच करेगा। जबकि विकासशील देशों में ग्रीनहाउस गैसों के अल्प-उत्सर्जन की मात्रा को देखते हुए वर्तमान में इन्हें कटौती से मुक्त रखा गया है।


ओजोन परत का क्षय

ओजोन परत हमारे वायुमंडल के समताप-मंडल में पाया जाता है। ओजोन आक्सीजन का ही एक रूप है। आक्सीजन गैस में आक्सीजन के दो परमाणु होते है जबकि ओजोन में आक्सीजन के तीन परमाणु होते हैं। 

ओजोन एक हानिकारक गैस है और पृथ्वी के निकट इसकी मात्रा जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों के लिए बहुत ही हानिकारक होता है। किन्तु इसी ओजोन की हमारी पृथ्वी से 20 से 25 किमी0 की ऊंचाई पर समतापमंडल में पायी जाने वाली परत हमारे पृथ्वी के जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों के लिए हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर ‘रक्षा कवच‘ का काम करती है। इसी कारण से ओजोन परत को लेकर पूरा विश्व चिन्तित है।

समतापमंडल में हर स्थान पर ओजोन की मात्रा में कमी आयी है और दक्षिणी धु्रव प्रदेश के वायुमंडल को सर्वाधिक क्षति पहुंची है। सबसे पहले सन् 1985 में अंटार्कटिका में अमेरिका के क्षेत्रफल के बराबर  ओजोन परत में छिद्र देखा गया।

ओजोन परत के क्षरण का सबसे बड़ा कारण विभिन्न औद्योगिक उत्पादों में प्रयोग होने वाला क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैसें है। यह गैस हल्की होने के कारण वायुमंडल के स्ट्रेटोस्फेयर (Stratosphere) में पहुंचकर टूटते है। उनमें से क्लोरीन परमाणु अलग होकर ओजोन को आक्सीजन में बदल देता है।  इस प्रकार से स्पष्ट है कि जितनी मात्रा में सी0एफ0सी0  (Chloro-Floro Carbon) वायुमंडल में जाएगी उतनी ही मात्रा में ओजोन  का क्षरण होगा।

यदि ओजोन के परत की रक्षा नहीं की गई तो सूर्य की पराबैंगनी किरणें सीधे पृथ्वी पर आयेंगी। इन पराबैंगनी किरणों के अनेक घातक प्रभाव पड़ेगें पृथ्वी पर तापमान में अत्यधिक वृद्धि होगी, अनेक प्रकार के चर्म रोग होंगे, त्वचा का कैंसर बहुत तेजी से फैलेगा, पेड़ पौधों की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होगी आदि।


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