भूखी थी गौरैया एक दिया किसी ने दाना फेंक। Hindi Poem
भूखी गौरैया
भूखी थी गौरैया एक दिया किसी ने दाना फेंक।
ज्यों ही उसने दाना खाया, बेहोशी से सिर चकराया।
खुल आंख तो उड़ गये होश, देख के पिजड़ा आया रोष।
पिंजड़े में वह कैसे आयी, यह बिल्कुल वह जान न पायी।
पानी पिया न खाया खाना, मर जाने का किया बहाना।
जब पिंजड़े का मालिक आया, देख के हालत वह घबराया।
उसने बाहर उसे निकाला, हाथ पर रखकर जरा उछाला।
हाथ से छूटी आयी जान, गौरैया ने भरी उड़ान।
धोखे से अब न आऊंगी, लिया था उसने मन में ठान।
बिन परखे कुछ न खाऊंगी, चाहे भूख से निकले जान।
Labels: कविता


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