Monday, December 14, 2020

कल्पना - कल्पना के प्रकार, परिभाषा, उपयोगिता

 "दूरस्थ या परोक्ष वस्तुओं के संबंध में चिंतन करना ही कल्पना है" - मैकडूगल

"मनोविज्ञान में कल्पना शब्द का प्रयोग सब प्रकार की प्रतिमाओं के निर्माण को व्यक्त करने के लिये किया जा सकता है" - डमविल

 

कल्पना - कल्पना के प्रकार, परिभाषा, उपयोगिता
कल्पना - कल्पना के प्रकार, परिभाषा, उपयोगिता 

 

कल्पना की परिभाषा

जब मनुष्य भूतकाल एवं भविष्यकाल के बारे में वर्तमान समय में जो कुछ सोचता है वही कल्पना है।

कल्पना के प्रकार

कल्पना का वर्गीकरण विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने मतानुसार किया है। दो प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मैकडूगल और ड्रेवर का वर्गीकरण निम्न प्रकार से है-

कल्पना के प्रकार

कल्पना के प्रकार

कल्पना के प्रकार

कल्पना के प्रकार


पुनरुत्पादक कल्पना (Reproductive)

इस कल्पना में स्मृति द्वारा गत अनुभवों की प्रतिमाओं को ज्यों का त्यों चेतना में लाने का प्रयत्न किया जाता है। जैसे - बालक जब किसी सुनी हुई पुरानी कहानी को यथासंभव कल्पना के सहारे उसी रुप में अभिव्यक्त करने का प्रयत्न करता है तो उसे पुनरुत्पादक कल्पना कहते है।

उत्पादक कल्पना (Productive)

इस प्रकार की कल्पना में गत अनुभवों और प्रतिमाओं को एक नवीन क्रम में या नवीनता के साथ प्रस्तुत किया जाता है इस कल्पना के दो उपयोग है।

  1. रचनात्मक कल्पना
  2. सृजनात्मक कल्पना

आदानात्मक कल्पना (Receptive)

इस प्रकार की कल्पना को अनुकरणात्मक कल्पना भी कहते हैं। इस कल्पना के द्वारा व्यक्ति किसी ऐसी वस्तु को समझने का प्रयत्न करता है जिसे उसने प्रत्यक्ष रुप से कभी नहीं देखा या जाना है। इससे व्यक्ति दूसरों के कहने या बताने से उस विषय की कल्पना करने लगता है शिक्षा में इसी प्रकार की कल्पना का उपयोग होता है।

सृजनात्मक कल्पना

यह उच्च स्तर की कल्पना है इसमें अतीत अनुभवों के आधार पर व्यक्ति मन में एक काल्पनिक परिस्थित बनाता है और पूर्व प्राप्त सामग्री की प्रतिमा को नवीन क्रम में व्यवस्थित करता है यह भविष्योन्मुख होती है इसके दो प्रकार हैं-

  1. कार्यसाधक या प्रयोगात्मक कल्पना
  2. रसात्मक कल्पना

कार्यसाधक कल्पना

आज रेल, तार, टेलीफोन, वायुयान, आकाशवाणी, दूरदर्शन यन्त्र आदि कार्यसाधक कल्पना का ही परिणाम है। इस प्रकार की कल्पना विचारक, अन्वषक या वैज्ञानिक की होती है।

रसात्मक या सौन्दर्यात्मक कल्पना

यह कल्पना सौन्दर्य-लिप्सा या भावनाओं को संतुष्ट करती है। यह कल्पना सौन्दर्य की सृष्टि और प्रशंसा में लीन रहती है।

रसात्मक कल्पना के दो उपभाग हैं-

  1. मनतरंगी कल्पना
  2. कलात्मक कल्पना

कलात्मक कल्पना

इसके द्वारा कला संबंधी कार्यों का सृजन होता है। यह मानव के लिए लाभप्रद होती है।नाटक, कहानी उपन्यास और चित्र आदि में यही कल्पना पायी जाती है।

मनतरंगी कल्पना

इस प्रकार की कल्पना में किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं होता है। यह कल्पना न व्यक्ति के लिए उपयोगी होती है और न समाज के लिए। इसमें मन कल्पना के पंख लगाकर उड़ने लगता है। इस प्रकार की कल्पना को हवाई किले बनाना, ख्याली पुलाव पकाना आदि नाम दिये जाते हैं।

कल्पना और शिक्षा

बालक की शिक्षा में कल्पना का महत्वपूर्ण स्थान है। कल्पना के विकास के लिए निम्नांकित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।

  1. ज्ञानेन्द्रियों को प्रशिक्षित करना।
  2. भाषा-विकास पर ध्यान देना।
  3. काल्पनिक खेल एवं क्रियाओं के लिए अवसेदन।
  4. कहानी सुनाना।
  5. रचनात्मक प्रवृत्ति का विकास करना।
  6. अभिनय करना।

शिक्षा में कल्पना की उपयोगिता 

  1. ज्ञानार्जन में सहायक।
  2. नवीन आविष्कारों में उपयोगी।
  3. इच्छाओं की सन्तुष्टि का साधन।
  4. समायोजन में सहायक।
  5. सौन्दर्य बोध का विकास।
  6. भावी जीवन की तैयारी में सहायक।
  7. स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगिता।

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