देखे थे मैंने भी कभी, अहले वतन पे मरने के ख्वाब। Waqt ki mahatta... Hindi_Kavita
वक्त की महत्ता
देखे थे मैंने भी कभी, अहले वतन पे मरने के ख्वाब।
लेकिन अचम्भा रह गया, उतरा जो सर से मेरे नकाब,
मुझको खुद से थे गिले, कुछ कर न पाने की वजह।
फिर भी मैं खामोश था, सबसे बड़ी थी ये सजा।
मुद्दत से एक मौका मिला, शिकवा मिटाने के लिए।
खुद को मैं ढूढ़ने निकला, मन में एक दीपक के लिए।
खुद मैं न खोज पाया, वक्त था एकदम करीब।
जब मिला तब वक्त न था, रो रहा कैसा नसीब।
वक्त की दुनिया है यारों, बेवक्त कुछ होता नहीं।
ऐ अभागे, फिर मिलेंगे, वक्त को आने दो.........
Labels: कविता


<< Home