राम की वनवास यात्रा के साक्ष्य बने स्थानों की....कहानी (Ram ki Vanvaas Yatra Ke Sakshya Bane Sthaan)
राम की वनवास यात्रा के साक्ष्य बने स्थानों की....कहानी (Ram ki Vanvaas Yatra Ke Sakshya Bane Sthaan)
भारत का शायद ही कोई निवासी होगा जो भगवान राम के जीवन से अपरिचित हो। दरअसल मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जीवन स्वयं में इतना महान रहा है कि अगर कभी आदर्श व्यक्तित्व का उदाहरण देना पड़े तो श्रीराम से ऊपर किसी का नाम नहीं आता। वहीं यदि बात यदि उनके वनवास के दिनों की घटनाओं की करें तो वहां से भी हम बहुत कुछ जान-सीख सकते है। आज से भारतीय रेलवे उन सभी स्थानों को एक रेलमार्ग में जोड़कर “श्री रामायण एक्सप्रेस” नामक रेलगाड़ी की शुरुआत कर रही है। ऐसे में रेलयात्री ने सोचा कि क्यों न सभी रेलयात्रियों को अपने ब्लॉग के ज़रिये उन सभी पवित्र स्थानों के आत्मिक दर्शन करवा दिए जाएं। जहां जहां श्रीराम ने माता सीता एवं अपने अनुज लक्ष्मण के साथ वनवास का समय बिताया था आईए जाने भारत में स्थित उन स्थानों एवं घटनाओं के बारे में जहां श्रीराम के पावन चरण पड़े थे।
केवट प्रसंग-
वाल्मिकी रामायण के अनुसार अयोध्या का राजमहल त्यागने के बाद भगवान राम माता सीता, अनुज लक्ष्मण संग सर्वप्रथम अयोध्या से कुछ दूर स्थित मनसा नदी के समीप पहुंचे। वहां से गोमती नदी पार कर वे इलाहाबाद के समीप वेश्रंगवेपुर गये जो राजा गुह का क्षेत्र था। जहां उनकी भेंट केवट से हुई जिसको उन्होंने गंगा पार करवाने को कहा था। वर्तमान में वेश्रंगवेपुर सिगरौरी के नाम से जाना जाता है जो कि इलाहाबाद के समीप स्थित है। वहीं गंगा पार कर भगवान ने कुरई नामक स्थान में कुछ दिन विश्राम किया था। यहां एक छोटा मंदिर है जो उनके विश्रामस्थल के रूप में जाना जाता है।
चित्रकुट का घाट-
कुरई से आगे भगवान राम ‘प्रयाग’ ( इलाहाबाद )। प्रयाग स्थित बहुत से स्मारक उनके वहां व्यतीत किए दिनों के साक्ष्य है। इनमें वाल्मीकि आश्रम, माडंव्य आश्रम, भरतकूप आदि प्रमुख हैं विद्वानों के अनुसार यही वह स्थान है जहां उनके अनुज भरत उन्हें मनाने के लिए आए थे और श्रीराम के मना करने के बाद उनकी चरण पादुकाओं को राजसिंहासन पर रखकर अयोध्या नगरी का भार संभाला था। क्योंकि तब दशरथ भी स्वर्ग सिधार चुके थे।
अत्रि ऋषि का आश्रम-
वहां से प्रस्थान कर भगवान सतना मध्यप्रदेश पहुंचे। वहां उन्होंने अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ समय व्यतीत किया। अत्रि ऋषि वहां अपनी पत्नी, माता अनुसूइया के साथ निवास करते थे। अत्रि ऋषि, माता अनुसूइया एवं उनके भक्त सभी वन के राक्षसों से काफी भयभीत रहते थे। श्रीराम ने उनके भय को दूर करने के लिए सभी राक्षसों का वध कर दिया।
दंडकारणय-
अत्रि ऋषि से आज्ञा लेकर भगवान ने आगे पड़ने वाले दंडकारयण ‘छतीसगढ़‘ के वनों में अपनी कुटिया बनाई। यहां के जंगल काफी घने हैं और आज भी यहां भगवान राम के निवास के चिन्ह मिल जाते हैं। मान्यता ये भी है कि इस वन का एक विशाल हिस्सा भगवान राम के नाना एवं कुछ पर रावण के मित्र राक्षस वाणसुर के राज्य में पड़ता था। यहां प्रभु ने लम्बा समय बिताया एवं नजदीक के कई क्षेत्रों का भी भ्रमण भी किया। पन्ना, रायपुर, बस्तर, जगदलपुर में बने कई स्मारक स्थल इसके प्रतीक हैं। वहीं शहडोल, अमरकंटक के समीप स्थित सीताकुंड भी बहुत प्रसिद्ध है। यहीं पास में सीता बेंगरा एवं लक्ष्मण बेंगरा नामक दो गुफाएं भी हैं।
पंचवटी में राम-
दंडकारणय में कुछ वर्ष व्यतीत करने के बाद प्रभु गोदावरी नदी, ‘नासिक के समीप’ स्थित पंचवटी आ गए। कहते हैं कि यहीं लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पनखा की नाक काटी थी। इसके बाद यह स्थान नासिक के नाम से प्रसिद्ध हो गया। ‘संस्कृत में नाक को नासिक कहते हैं ।‘ जबकि पंचवटी का नाम गोदावरी के तट पर लगाए गए पांच वृक्षों पीपल, बरगद, आवला, बेल तथा अशोक के नाम पर पड़ा। मान्यता है कि ये सभी वृक्ष राम- सीता, लक्ष्मण ने लगाए थे। राम-लक्ष्मण ने यहीं खर-दूषण साथ युद्ध किया था। साथ ही मारीच वध भी इसी क्षेत्र में हुआ था।
सीताहरण का स्थान-
नासिक से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित ताकड़े गांव के बारे में मान्यता है कि इसी स्थान के समीप भगवान की कुटिया थी जहां से रावण ने माता सीता का हरण किया था। इसके पास ही जटायु एवं रावण के बीच युद्ध भी हुआ था एवं मृत्युपूर्व जटायु ने यहीं राम को सीताहरण के बारे में बताया था। यह स्थान सर्वतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। वहीँ आंध्रप्रदेश के खम्मम के बारें में कई लोगों की मान्यता है कि राम-सीता की कुटिया यहां थी।
शबरी को दर्शन-
जटायु के अंतिम सस्कार के बाद राम-लक्ष्मण सीता की खोज में ऋष्यमूक पर्वत की ओर गए। रास्ते में वे पम्पा नदी के समीप शबरी की कुटिया में पहुंचे। भगवान राम की शबरी से हुई भेंट से भला कौन परिचित नहीं है? पम्पा नदी केरल में है प्रसिद्द सबरीमला मंदिर इसके तट पर बना हुआ है।
हनुमान से भेंट-
घने चंदन के वनों को पार करते हुए जब भगवान ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे तब वहां उन्हें सीता के आभूषण मिले एवं हनुमान से भेंट हुई। यहीं समीप में उन्होंने बाली का वध किया था यह स्थान कर्णाटक के हम्मी, बैल्लारी क्षेत्र में स्थित है। पहाड़ के नीचे श्रीराम का एक मंदिर है एवं नजदीक स्थित पहाड़ के बारें मान्यता है कि वहां मतंग ऋषि का आश्रम था इसलिए पहाड़ का नाम मतंग पर्वत है।
सेना का गठन-
हनुमान एवं सुग्रीव से मित्रता के बाद राम ने अपनी सेना का गठन किया एवं किष्किन्धा ‘कर्णाटक’ से प्रस्थान किया। मार्ग में कई वनों, नदियों को पार करते हुए वो रामेश्वरम पहुंचे। यहां उन्होंने युद्ध में विजय के लिए भगवान शिव की पूजा की। रामेश्वरम में तीन दिनों के प्रयास के बाद भगवान ने उस स्थान का पता लगवा लिया जहां से आसानी से लंका जाया जा सकता था। फिर अपनी सेना के वानर नल-नील की सहायता से उस स्थान पर रामसेतु का निर्माण करवाया।
नुवारा एलिया पर्वत श्रृंख्ला-
मान्यताओं के अनुसार हनुमान द्वारा सर्वप्रथम लंका जाने के बाद जिस स्थान का ज्ञान हुआ वो लंका संमुद्र से घिरी नुवारा एलिया पर्वत श्रृंख्ला थी। रावण की लंका यहीं पर बसी हुई थी। यहीं रावण के साम्राज्य को समाप्त कर राम ने 72 दिन चले युद्ध के बाद सीता को रावण की लंका से मुक्त कराया था।
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